नयी तारीख़: Happy New Year!
एक और नया साल, नयी तारीख़,
कल कि तारीख़, आज बन गयी तारीख़,
क्या इस नए साल में लिख सकेंगे हम,
एक नयी तारीख़?
या फिर पुराने रंग-ढंग में ही,
डूबी रहेगी यह भी तारीख़?
औरत को इज़ज़त, ग़रीब कि ख़िदमत,
क्या देख पाएगी हमारी तारीख़?
कह रहें हैं आम आदमी का ज़माना आ गया है,
क्या सचमुच आम आदमी को उठता देखेगी तारीख़?
जब एक आदमी चढ़ता है तो आम नहीं रहता,
क्या आम आदमी कि भीड़ को ऊंचाई पे देख पाएगी तारीख़?
इतिहास में मरने-मारने कि बड़ी कहानियाँ हैं,
क्या एकता और इंसानियत को हीरो बनाएगी नयी तारीख़?
नए साल कि शुभकामनाएँ आज कि पीढ़ी को,
जो लिखेगी बड़ों के आशीर्वाद से एक नयी तारीख़।
फ़ोटो: फेसबुक |
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