किस तरह समेट लूँ डब्बों में तुझको, ऐ घर, तुझे तो मेरी साँसों से लिपट कर चलना होगा...


टिप्पणियाँ

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…
घर की रूह तो आप है...
चल पड़ेगा साथ...खुद-ब-खुद.

अनु
Bharat Bhushan ने कहा…
हर तब्दीली के साथ यह अहसास होता था. आपने उसे खूबसूरत लफ़्ज़ दिए हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ.
Nidhi ने कहा…
सब समेट लिया एक पंक्ति में
सुधाकल्प ने कहा…
बहुत कुछ सरलता से कह दिया |बहुत खूब !
Rakesh Kumar ने कहा…
अभी समझने की कोशिश कर रहा हूँ,अंजना जी.
वाशिंगटन डी.सी. कैसा लग रहा है आपको.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्