मुसलसल दर्द का ज़ाएका मीठा हो जाता है,

ख़त्म हो जाए तो कुछ कमी सी लगती है

सोचूँ खुशियाँ सारे जहां की मगर,

ख्याल-ए-उल्फत नम हो जाए तो कुछ कमी सी लगती है

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
ख़्याल-ए-उल्फ़त हर हाल में नम रहता है.
M VERMA ने कहा…
मुसलसल दर्द का जायका भी मीठा होगा
सुन्दर विरोधाभास
Rakesh Kumar ने कहा…
आपकी उर्दू कमाल की है अंजना जी.

कब और कैसे सीखी,हो सके तो हमें भी बताईयेगा.
सदा ने कहा…
वाह - वाह बहुत खूब ।

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