मिलावट के ज़माने में हम पीछे रहें क्यूँ 
उम्मीद मायूसी में मिला ली हमने 


बेईमानी का चलन अपनाया इस अदा से 
मुस्कराहट ग़म में मिला ली हमने 

गुस्से में जो नफरत घोलते हैं, घोला करें,
माफ़ी शिकायत में मिला ली हमने 




टिप्पणियाँ

ये मिलावट कहीं न कहीं सुकून देगी...
अच्छी लगी...
Shalini kaushik ने कहा…
बहुत खूब अंजना जी
आपकी मिलावट स्तुत्य है।
Bharat Bhushan ने कहा…
मिलावट के ज़माने में यह भी हो सकता है, मिलावट अच्छी लगी :))
आपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!
Unknown ने कहा…
Bahut kam shabdon mein jabardast abhivyakti.. Badhai..
Suresh Kumar ने कहा…
ek sacchaai aapane bayaan kar di...
bahut hi sundar rachana..
welcome to my blog....
Udan Tashtari ने कहा…
बेहतरीन...सही किया....
S.N SHUKLA ने कहा…
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
Rakesh Kumar ने कहा…
अरे वाह! आप तो मिलावट खोर हो गई हैं.
फिर तो आपको प्यार और स्नेह की बेडियाँ भी पहननी होंगीं.दिल की कोठरी में आजीवन कैद कर लिया जायेगा आपको.इस सजा की कोई अपील भी न होगी.

क्या सजा के डर से ही तो आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आ रहीं हैं.

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