देखूं, ज़िन्दगी कहाँ तक ले जाती है...
इस रचना ने समीर लाल जी की नयी किताब का शीर्षक याद दिला दिया, 'देख लूँ, तो चलूँ'... :-) समीर जी, cheating की कोशिश नहीं थी...
देखूं, ज़िन्दगी कहाँ तक ले जाती है,
चले चलूँ, जहाँ तक ले जाती है
चाह कर भी लौटा ना जाए,
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है
चारों मौसम, सारे नज़ारे, हर एहसास,
हर हाल में हमें तक-तक ले जाती है
थकें भी हों तो बहाने से बुलाती है
देखें इस तरह कब तक ले जाती है?
हम भी चले जाते हैं, रुक के क्या हासिल?
अपनी ही तो है, अपने ही घर तक ले जाती है
मगर इस रस्ते में बड़े मोड़ लाती है,
क्या-क्या बताएं किधर तक ले जाती है
खेलों की शौक़ीन ज़िन्दगी, बाज़ कहाँ आती है?
वफ़ा से मिलाती है कभी जफा तक ले जाती है
बड़ी मुश्किल से मुलाकात कराती है उससे,
बड़ी कोशिशों के बाद ये खुदा तक ले जाती है
हर चार कदम पे गुलाब की पंकुड़ी मिल जाती है
लगता है ये राह तुझ तक ले जाती है
वो जो कभी किसी को सुनाई ही नहीं दी,
अक्सर तन्हाई में उस 'आह' तक ले जाती है
देखूं, ज़िन्दगी कहाँ तक ले जाती है,
चले चलूँ, जहाँ तक ले जाती है
चाह कर भी लौटा ना जाए,
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है
चारों मौसम, सारे नज़ारे, हर एहसास,
हर हाल में हमें तक-तक ले जाती है
थकें भी हों तो बहाने से बुलाती है
देखें इस तरह कब तक ले जाती है?
हम भी चले जाते हैं, रुक के क्या हासिल?
अपनी ही तो है, अपने ही घर तक ले जाती है
मगर इस रस्ते में बड़े मोड़ लाती है,
क्या-क्या बताएं किधर तक ले जाती है
खेलों की शौक़ीन ज़िन्दगी, बाज़ कहाँ आती है?
वफ़ा से मिलाती है कभी जफा तक ले जाती है
बड़ी मुश्किल से मुलाकात कराती है उससे,
बड़ी कोशिशों के बाद ये खुदा तक ले जाती है
हर चार कदम पे गुलाब की पंकुड़ी मिल जाती है
लगता है ये राह तुझ तक ले जाती है
वो जो कभी किसी को सुनाई ही नहीं दी,
अक्सर तन्हाई में उस 'आह' तक ले जाती है
चाह कर भी लौटा ना जाए,
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है ...
टिप्पणियाँ
वफ़ा से मिलाती है कभी जफा तक ले जाती है
बड़ी मुश्किल से मुलाकात कराती है उससे,
बड़ी कोशिशों के बाद ये खुदा तक ले जाती है
phir bhi ye zindagi apni si lagti hai... bahut hi masoom si abhivyakti
जिन्दगी जाने कहाँ तक ले जाये
शुभकामनाये
zindgi ka falsafa itne sundar shabdon me...
खेलों की शौक़ीन ज़िन्दगी, बाज़ कहाँ आती है?
वफ़ा से मिलाती है कभी जफा तक ले जाती है
बड़ी मुश्किल से मुलाकात कराती है उससे,
बड़ी कोशिशों के बाद ये खुदा तक ले जाती है
सलाम.
badi koshisho ke baad khuda tak le jaati hai"
To phir aur kya chahiye is jindagi se.Muskil ke paar jaana,koshisho ki
naav per baith kar,is jindagi me hi to sambhav hai.
सस्नेहाभिवादन !
देखूं, ज़िन्दगी कहां तक ले जाती है … ? एक सुंदर गीत रचना है …
आपकी लेखनी से और भी श्रेष्ठ रचनाएं सृजित होने की मंगलकामना है …
अरे हां,
तीन दिन पहले प्रणय दिवस भी तो था मंगलकामना का अवसर क्यों चूकें ?
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं !♥
♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अक्सर तन्हाई में उस 'आह' तक ले जाती है
गीत के रूप में कही गई पंक्तियाँ सुंदर बन पड़ी हैं.
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है ..
wahh....bohot khoob...
लगता है ये राह तुझ तक ले जाती है
वो जो कभी किसी को सुनाई ही नहीं दी,
अक्सर तन्हाई में उस 'आह' तक ले जाती है ..
Bahut khoob ... lajawaab panktiyaan hain ....
चले चलूँ, जहाँ तक ले जाती है
चाह कर भी लौटा ना जाए,
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है
.........................Kya Baat Hai..........Bahut Sundar saiyojan
शुभकामनाये
लौटा ना जाये।
अब इसमें देखिये कि हमारी लौटने की चाह में वाकई कोई दम नहीं है। जब आग से घिर जायें तो बाहर निकलने के लिये चाहना थोड़े ही पड़ता है, अपने आप आदमी बाहर भागता है....अगर आत्महत्या की इच्छा से ही आग में ना कूदा हो तो.... नहीं ????
चले चलूँ, जहाँ तक ले जाती है
चाह कर भी लौटा ना जाए,
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है
Ati sundar .... saadhuwaad!
padhkar bahut khushi hui ,, zindagi ke safar ko bayaan karti hui..
badhayi
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बेदर्द, वहाँ तक ले जाती है
bahut achchi lagi.
अच्छा लिखा....
काश!! Cheating कर ही लेती..कुछ तो नाम हमारा भी होता... :)
बहुत सुन्दर!!