पापा के जूते

पापा के जूते
हमेशा चमकते रहते थे,
पलंग के पास बैठे-बैठे उनके तैयार होने का
मुस्तैदी से इंतज़ार करते रहते थे,
पापा गर घर पर हैं, तो जूते अपनी जगह पर,
उनके होने का निशाँ हुआ करते थे,
वैसे तो हमेशा वो अपने जूते
एक ही जगह उतारा करते थे,
कभी-कभी दूसरों की लापरवाही से,
उनके जूते पलंग के नीचे चले जाया करते थे,
बचपन में फट से घुटनों पे होकर,
भाई और मैं नीचे से निकाला करते थे,
पर जब हमारे कदम उनके जूतों से आगे निकल गए,
जाने कैसे पापा उन्हें निकाला करते थे
हाँ, हमेशा एक जैसे जूते ही खरीदते थे,
बिना फीते के जूते पसंद किया करते थे,
जब तक बहुत पुराने ना हो जाएं,
नए नहीं खरीदा करते थे,
जब कोई बीमार हो या मुश्किल में हो,
जूतों को जल्दी से पहन निकल जाया करते थे,
फिर धीरे धीरे जूते पहनना मुश्किल होने लगा,
कभी-कभी चप्पल में चले जाया करते थे,
पापा और चमकते हुए जूतों का साथ कम होने लगा
अब पापा ज़्यादातर घर में रहा करते थे,
जूते वहीँ बैठे बैठे
उनका इंतज़ार किया करते थे
फिर एक दिन उन्हें उनकी जगह से हटा दिया गया
क्यूँकी उनकी की जगह पंखों ने ले ली थी...

टिप्पणियाँ

Deepak Saini ने कहा…
आपकी कविता ने मन मे चित्र सा खीच दिया है
सुन्दर कविता
केवल राम ने कहा…
जूते वहीँ बैठे बैठे
उनका इंतज़ार किया करते थे
फिर एक दिन उन्हें उनकी जगह से हटा दिया गया
क्यूँकी उनकी की जगह पंखों ने ले ली थी...


मन की संवेदना को बखूबी उतारा है आपने ...पापा के जूतों के माध्यम से ....जूते अच्छा बिम्ब है ....आपका आभार
विशाल ने कहा…
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
सच में पापा के जूते बहुत याद आते हैं.
भावपूर्ण रचना.
मज़ाक नहीं ,पापा के जूतों की वजह से हम कुछ सुधर भी गए.
आपकी कलम को सलाम
kuch kah sakun aisi sthiti me nahin , bas apne papa yaad aate rahe ...
बिम्ब के माध्यम से एक नया चित्रण।
mridula pradhan ने कहा…
bhawook kar dene wali ek sunder kavita.
Rakesh Kumar ने कहा…
Jute..Papa....Pankh
Chal udja re panchi ki ab ye des hua begana.
O jane wale ho sake to lot ke aana
Kaya yahi gana to nahi gate ab papa ke jute.
Vikas Goyal ने कहा…
अति सुन्दर.
आप कि क़बिलियत वाकै कबिल ए तरिफ है.
Kanta Dayal ने कहा…
gudia aj kuchh nahi likh sakti phir kabhi ye jo tere ansu bah rahe hen tujhe din prati din nirmal bana rahe hen .bas abhi ke liye
अच्छी अभिव्यक्ति।
बेनामी ने कहा…
oh my gosh...!! im speechless.....kuch kehte nahin banta....itni khoobsurat nazm...its just too too good....for a moment, main sakte mein aa gayi thi....awwwwesome!!
बहुत ही मार्मिक ... समय के साथ कितना बदलाव आ जाता है .. जूते नहीं ये तो माध्यम हैं समय की बदलाव ... पीड़ी के सोच के बदलाव का .....
Bharat Bhushan ने कहा…
जीवन की प्रतिदिन घटित होती नन्हीं सी घटनाओं का सजीव चित्र आपने खींचा है. कैसे पाँवों में जूतों की जगह पंख ले लेते हैं पता ही नहीं चलता.
itna pyara aur sajeev bimb...:)
papa ke chamakte jute ke saath aapne paapa ko yaad kar liya..:)
Kailash Sharma ने कहा…
एक साधारण स्तिथि का इतना गहन मर्मस्पर्शी चित्रण..बहुत सुन्दर
समय के साथ कितना बदलाव आ जाता है
Dorothy ने कहा…
दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
कुमार संतोष ने कहा…
वाह क्या बात है बहुत ही खूबसूरत एहसास से भरी खूबसूरत रचना !

आभार !!
Navin ने कहा…
कविता पढता रहा और सोचता रहा की आगे क्या लिखोगी... लेकिन आखरी पंक्तिने ... होश उडा दिया.
बहुत खुब !
Udan Tashtari ने कहा…
भावुक कर गई रचना.....

कैसे अंकित रहती हैं मानस पर वो यादें...

मार्मिक प्रस्तुति!!

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