ख़ामोशी
उनकी ख़ामोशी को समझना उनको समझने से भी मुश्किल काम है...
क्या है यह ख़ामोशी? क्यूँ ये सुनाई सी देती है? ख़ामोशी जितनी लम्बी हो उतनी ही तेज़ सुनाई देती है, मगर इसकी आवाज़ में लफ्ज़ नहीं होते, यह सुबकती है, मुस्कुराती है, बुलाती है, लौटा भी देती है, मगर इस उम्मीद में रहती है की शायद कभी मर मिटेगी और लफ़्ज़ों में बयां होगी...
ख़ामोशी में सब्र है, दर्द है ,
शरारत है, इकरार भी है,
इसी से तकरार संभलती है,
यही इज़हार-ऐ-तकरार भी है
ये पनाह देती है राज़-ऐ-दिल को,
दिल पे ताला भी खुद है, खुद ही पहरेदार भी है
कभी गुनगुनाती है ग़ज़ल बन कर,
कभी अंधेरों में खोया सूना दयार भी है
कहते हैं, एक चुप सौ बातों पे भारी,
मगर कभी शिकस्त-ओ-हार भी है
चिलमन-ऐ-ख़ामोशी में छिपे हैं सैंकड़ों एहसास,
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं
सुस्त माज़ी को सुला लेती है अपनी गोद में,
कभी मुस्तकबिल के तूफ़ान की पयाम बार भी है
http://www.layoutsparks.com/1/182242/waiting-alone-girl-sad.html |
यह वो दोशीज़ा है जिसे इंतज़ार-ऐ-रिवायत-ऐ-वफ़ा है
ख़ामोश है मगर टूट जाने को तैयार भी है
मुस्तकबिल = Future
पयाम बार = messenger
दोशीज़ा = Damsel, Virgin
रिवायत = Tradition
टिप्पणियाँ
अच्छी कविता लिखती हैं आप ! बधाई !
अब तक सुनते आया था - मौनं स्वीकृति लक्षणं
लेकिन आपने ख़ामोशी के इतने चेहरे दिखा दिए …
यह वो दोशीज़ा है जिसे इंतज़ार-ए-रिवायत-ए-वफ़ा है
ख़ामोश है मगर टूट जाने को तैयार भी है
बहुत सुंदर !
और हां, आपकी पिछली पोस्ट की कविता भी बहुत पसंद आई …
नव वर्ष निकट है …
अग्रिम शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
नमस्कार !
बेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं....
Lovely lines !
पर कभी शिकस्त-ओ-हार भी है।
अति सुन्दर। मुबारक।
कुछ नहीं याद,
कुछ नहीं याद।
bahut sahi pahchaana khamoshi ko
मगर कभी शिकस्त-ओ-हार भी है
बहुत बढ़िया
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं....
khubsurti chhalak rahi hai:)
लिखते रहिये ...
मगर कभी शिकस्त-ओ-हार भी है
चिलमन-ऐ-ख़ामोशी में छिपे हैं सैंकड़ों एहसास,
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं
एक बहतरीन कविता
जो पर्दाफाश होने को बेक़रार भी हैं
बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !
anjanaji, bahut sunder !
प्रशंसा में जो भी कह डाला जाय कम ही है...
इस रचना का भाव और कला सौन्दर्य दर्शनीय है...
मन हुलास गया पढ़कर...वाह !!!!
'कहते हैं, एक चुप सौ बातों पे भारी,
मगर कभी शिकस्त-ओ-हार भी है'
बेहतरीन रचना
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
शरारत है, इकरार भी है,
इसी से तकरार संभलती है,
यही इज़हार-ऐ-तकरार भी है.........
अंजना जी गहरे जज्बातों से भारी हुई सुंदर कविता . आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. .......
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