जज़्बात कुछ यूँ बयां होते हैं...



कभी कह के, कभी लिख के,
कभी आँखों से बयां होते हैं

कभी आंसूं, कभी तब्बसुम,
कभी स्याही से बयां होते हैं 

नहीं शहूर इन अल्हड़ जज़बातों को,
पर्दे को हवा कर के, बयां होते हैं

कभी बेबाक हैं, कभी शर्मीले से,
कभी इतराते हुए बयां होते हैं 

कभी शीशे में उतरते नज़र आते हैं,
कभी धुंध-ओ-धुंए में बयां होते हैं 

कभी तीरंदाजी करते हैं, कभी मल्ल्हम लगाते हैं,
हर अंदाज़ में बयां होते हैं 

दिल में छुपे रहते हैं तो गुबार बन जातें हैं,
राहत-ऐ-रूह है जब बयां होते हैं 

बड़ी वफ़ा से साथ निभाते हैं ज़िन्दगी का,
आखरी सांस तक बयां होते हैं 

टिप्पणियाँ

Bharat Bhushan ने कहा…
कभी आंसूं, कभी तब्बसुम,
कभी स्याही से बयां होते हैं

बहुत दिनों के बाद आपने कविता ब्लॉग की है. अच्छी रचना.
M VERMA ने कहा…
कभी आंसूं, कभी तब्बसुम,
कभी स्याही से बयां होते हैं
बयाँ तो होना ही है किसी भी रूप मे हो सकते हैं
सुन्दर रचना
शारदा अरोरा ने कहा…
बहुत सुन्दर लिखा है , प्रोफाइल भी अच्छी लगी ..
बेनामी ने कहा…
बहुत ही सुन्दर रचना... अच्छा लगा पढ़कर....
यूँ ही लिखती रहे...
मेरे ब्लॉग पर पहचान कौन चित्र पहेली :-४
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
शुक्र है, चुप्पी नहीं है,
हालात तो बयाँ होते हैं।
बड़ी वफ़ा से साथ निभाते हैं ज़िन्दगी का,
आखरी सांस तक बयां होते हैं
bahut badhiyaa
कभी आँसू कभी तबस्सुम
कभी स्याही से ब्याँ होते हैं।
बिलकुल सही बात है\ ब्याँ होने चाहिये जैसे भी हों। अच्छी लगी गुडिया की प्यारी रचना
आशीर्वाद।
कभी कह के कभी लिख के कभी आंसू सि बयां होते हैं ।
बहुत ही सुनदर अभिव्यक्ति आभार व बधाई।
amar jeet ने कहा…
बहुत सुंदर रचना एक एक शब्द भाव लिए हुए !
मेरे ब्लॉग में इस बार .........उफ़ ये रियेलिटी शो
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
सभी को ब्लॉग पे आने और रचना की सराहाना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया :-)

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